कार्यस्थल में जेन्डर : पुरुषों के साथ इसका क्या लेना-देना है।

 नहीं! यह POSH या कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न पर एक ब्लॉग नहीं है.

लेकिन हाँ, यह पुरुषों के लिए है।

वर्षों से जेन्डर  शब्द हमारे रोजमर्रा के शब्दकोश का हिस्सा बन गया है, लेकिन पुरुष अभी भी इसे  अपने रास्ते पर एक  केले के छिलके की तरह देखते हैं। वे उससे बच कर चलते हैं,  रास्ता बदल लेते हैं । कभी-कभी वे यह भी सोचते हैं कि यह कहीं सांप की तरह अपनी फन न फेला दे । लेकिन वे जो भी करते हैं, वे हमेशा सावधान रहते हैं कि उस पर कदम न रखें। उन्हें एक  अजीब डर है कि अगर वे ऐसा करते हैं, तो वे हमेशा के लिए फिसल जाएंगे!

लगभग 25 साल पहले  जब मैंने पहली बार भारत के विभिन्न राज्यों के पुरुष, जो की सब डॉक्टर थे, के  साथ जेन्डर के बारे में चर्चा करना शुरू किया था, तो इस शब्द का क्या मतलब है , इसके बारे में भ्रम था। डॉक्टरो का शरीर के साथ वास्ता रहता है , और उन सभी ने माना कि जेन्डर और  सेक्स एक समान है ।   उनके  लिए जेन्डर में अंतर महिलाओं और पुरुषों के  बीच  सभी अंतर को कह सकते हैं । मूंछ और स्तन से लेकर महिलाएं बेहतर मां होती  हैं और पुरुष ताकतवर और बहादुर हैं उन्होंने सभी को जेन्डर माना था ।  उन दिनों, कई सरकारी आवेदन पत्रों में 'जेन्डर’ शब्द  का मतलब इसे भरने वाला व्यक्ति अपने लिंग या sex को इंगित करे। उस समय  की तुलना में आज अधिकांश लोग अब जेन्डर और लिंग या सेक्स के बीच के फर्क से परिचित हैं।  लेकिन कई माएने मे जेन्डर को अब केवल महिलाओं और नारीवाद से संबंधित माना जाता है। और कई पुरुष नारीवाद और नारीवादियों से सावधान रहते हैं और इसी लिए वे जेन्डर से भी दूर रहना चाहते हैं।

महिलाओं के साथ जेन्डर का आसान जुड़ाव इसलिए है क्योंकि 'जेन्डर समानता' दुनिया भर में महिला आंदोलन का एक नारे के रूप में उभरा था  लेकिन जेन्डर का पहचान बिना समानता के भी हो सकता है, और ज्यादातर मामलों में ऐसा ही होता है। जेन्डर महिलाओं के लिए  लागू  है,  और यह पुरुषों के लिए समान रूप से लागू  है। जेन्डर हर किसी के जिंदगी के वास्तविकता में मौजूद है।

तो फिर यह सर्वव्यापी जेन्डर क्या है?

जेन्डर का प्रभाव जन्म से शुरू होता है। यह अपेक्षाओं का एक जामा या परत है जो समाज हम सब पर डालता है;  जिस क्षण से हम पैदा होते हैं, उसी क्षण से  जैसे ही माँ, दादी या यहां तक कि नर्स नवजात शिशु को  पकड़ती है, उसे देख कर मुस्कुराती है, या प्यार भरी आवाज़ें से उसका दुनिया में स्वागत करती है, उसी समय उस मा, दादी या नर्सों  की जेन्डर आधारित अपेक्षाएं प्रकट हो जाती है, और बच्चे की जिंदगी पर जेन्डर का प्रभाव शुरू हो जाता है। बच्चे के 'सेक्स' के आधार पर बच्चे को पकड़ने वाले की मुस्कान लंबी हो सकती है या आवाज नरम हो सकती  है।  यह अंतर इसलिए नहीं है क्योंकि बच्चा एक विशेष 'सेक्स' का है, बल्कि धारकों की अपेक्षाओं में अंतर के कारण  है। यह जेन्डर है! और जल्द ही, शिशु लड़की है या लड़का है उसी के आधार पर उसे अलग-अलग कपड़े पहनाए जाते हैं, अलग-अलग चीजें सिखाई जाती हैं, और अक्सर  बेटी या बेटा होने के आधार पर अलग-अलग खाना भी दिया जाता  है। हर लड़की के साथ एक तरीकों से व्यवहार किया जाता है, और हर लड़के के साथ एक ही जैसा बर्ताव किया जाता है। और देखते देखते लड़कियां लड़कों की तुलना में अलग तरह से सोचने लगतीं हैं, महसूस करने लगती  हैं और व्यवहार करने लगती  हैं।   परिवारों के माध्यम से और बाद में दोस्तों, पड़ोसियों, शिक्षकों और सहपाठियों  के माध्यम से, समाज आसानी से जेन्डर  के  अपने सामाजिक  सीख  को सेक्स के 'जीन' या गुणसूत्रों  में गहरे रूप से डाल देती है। और शिशु लड़की जल्द ही 'जेन्डर अनुकूल' महिला बन जाती हैं जबकि शिशु लड़के 'जेन्डर अनुकूलपुरुष बन जाते हैं।  हम  पुरुष जेन्डर से जितना भी दूर भागना चाहें , अंत में  हम सभी को 'जेन्डर ' से जूझना पड़ता है  ज्यादातर लोग जेन्डर  की इस प्रक्रिया को स्वीकार लेते हैं, लेकिन जो लोग जेन्डर की नियमों में  अपने आप को फिट नहीं पाते जैसे कि समलैंगिक या ट्रांस-जेन्डर लोग , उन्हें जिंदगी भर संघर्ष करना पड़ता है।

जेन्डर न केवल हमारे अपने विचारों, भावनाओं, कार्यों और प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करता है  , बल्कि दूसरों की हमसे  अपेक्षाओं से भी  प्रभावित होता  है। आप  यहां एक छोटा सा क्विज़  ले  सकते हैं और देख सकते हैं कि हम सभी कैसे प्रभावित हुए हैं।

जेंडर  कैसे कार्यस्थल में प्रवेश करता है।

पहले जमाने मे घर को एक आदमी का महल और कार्यस्थल को आदमी की दुनिया माना जाता था ।  लड़कियां गुड़िया के साथ खेलती थीं, उन्हे खाना बनाना, सिलाई करना  और बुनना सिखाया जाता था और उन्हें कुशल गृहिणी, कर्तव्यपरायण पत्नि और स्नेही माता बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था।  कुछ महिलाएं नौकरी करती थी , पर उनसे कुछ चुनिंदे काम जैसे शिक्षक, टाइपिस्ट, रिसेप्शनिस्ट, टेलीफोन ऑपरेटर जैसे पदों के लिए ही उचित माना जाता था । सभी महिलाओं से या तो नौकरी करने की उम्मीद नहीं थी या उन्हे अनुमति नहीं दी जाती  थी। बहुत समय पहले 'अच्छे घरों' या किसी खास जाति और धर्म की महिलाएं  नौकरी पर नहीं जाती थीं, और अगर वे जाती भी थीं, तो शादी होते ही वे काम करना बंद कर देती थीं।  मेरी मां ने शादी से पहले एक स्कूल शिक्षक के रूप में काम किया  था, और शादी के तुरंत बाद नौकरी छोड़ दिया था। बाद में वह पेशेवर दुनिए में  दोबारा  से लौटकर  आई, लेकिन यह  मेरे पिता की मृत्यु के बाद ही हुआ।  लेकिन आजकल आर्थिक आवश्यकता के कारण और महिलाओं की खुद की आकांक्षाओं से बड़ी संख्या में महिलाओं ने  नए नए व्यवसायों में और पदों पर अपना साख जमाया है जहां पहले कोई महिला नहीं पहुँच पाती थी।

अगर गौर से देखे तो दिखता है की महिलाओं ने अब 'पुरुषों की दुनिया' में  जबरदस्त घुसपैठ शुरू कर दिया है।  और इससे कई विडंबनाए खड़ी हो गई है।  कई जगहों पर महिलाओं से जूझने के लिए नए नियम लागू किए गए हैं।  लेकिन महिलाओं और पुरुषों दोनों के मन में फिर भी कई शंकाएं  बनी रहती हैं।  यह एनिमेटेड वीडियो ऐसी कुछ कठिनाइयों को दर्शाता है जो तब आती हैं जब एक महिला एक सहयोगी के रूप में एक पुरुष बहुल कार्यस्थल में शामिल होती है।  यह फिल्म महिला के नजरिए से है, लेकिन यह समझना आसान है कि पुरुषों को भी इस बात से अनजान रखा गया  है कि जब उनके बीच एक महिला सहकर्मी आती है तो उन्हें  क्या करना होगा ।

जब एक महिला कार्यस्थल में प्रवेश करती है, तो मान  लिया गया है कि उसके पास नौकरी करने के लिए  अपेक्षित और आवश्यक योग्यता और दक्षताएं हैं। लेकिन उसके साथ कई सहकर्मी, पर्यवेक्षक और अधीनस्थ कर्मी भी होते हैं, जो अधिकतर पुरुष  हो सकते हैं। इन सबके साथ उस महिला को अपने काम को सही ढंग से करने के लिए एक औपचारिक और अनौचारिक संपर्क स्थापित करना पड़ता है।  इन संबंधों में जेन्डर का प्रभाव एक बड़ा हिस्सा बन जाता है।  जेन्डर जैसा कि हम सभी जानते हैं, न केवल एक व्यक्ति के भूमिकाओं को प्रभावित करता है बल्कि उसके रिश्तों में भी प्रतीत होता है। पुरुषों को घरेलू या व्यक्तिगत जिंदगी में महिलाओं के साथ मां, बहन, प्रेमिका, पत्नी और सीमित रूप में एक दोस्त के रूप में व्यवहार करने के लिए प्रशिक्षण या मौके मिलते है । औपचारिक क्षेत्र में पुरुषों को महिलाओं  के साथ केवल शिक्षिका के रूप मे ही संपर्क का मौका मिलता है। अभी कार्यस्थल पर महिलाओं के आने से  अचानक पुरुषों को  महिलाओं के साथ एक नए मानदंड के आधार पर रिश्ता जोड़ना पड़ रहा है, या इस की  उम्मीद की जा रही है। इस नए मानदंड के रिश्ते के लिए पुरुषों के पास कोई तैयारी नहीं रहती, कोई पहले का अनुभव नहीं है। और वे पूरी तरह से भ्रमित हो जाते हैं कि महिलाओं के साथ कैसे संबंध बनाए जाए, कैसे बोल चाल किया जाए, कैसे उनके बारे सोचा जाए, महिलाओं से क्या उम्मीद किया जाए

कुछ साल पहले, मैं  एक वित्तीय संस्थान  के मध्य स्तरीय प्रबंधकों  के साथ  जेन्डर  पर एक  कार्यशाला संचालित कर रहा था। संस्थान के जेन्डर ऑडिट   से  संकेत मिला था कि प्रबंधकीय पदों पर बहुत कम महिलाएं थीं और इसलिए यह कार्यशाला आयोजित की गई थी।  पुरुष प्रबंधकों का कहना था कि महिलाएं स्थानांतरण और  पदोन्नति  का विकल्प नहीं चुनती हैं और कई मामलों में, उनमे  'प्रबंधक योग्य गुण ' नहीं पाया गया था। महिलाएं शायद ही कभी  कार्यालय के समय के बाद होने वाली महत्वपूर्ण बैठकों के लिए रुकती थीं, और कार्यालय का समय पूरा होते ही निकल जाती हैं, और कभी-कभी काम पर देर से भी आती हैं  काम के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पुरुषों की तुलना मैं कम  नजर आती है । और फिर मातृत्व अवकाश का भी मामला उनके जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा था। लंबे ब्रेक से  वापस आने के बाद उनकी दक्षता घट जाती है और अक्सर उनके बाद आया हुआ पुरुष कर्मी उनका पर्यवेक्षक बन जाता है, जिससे कुछ अलग कठिनाइया सामने आती हैं।   यहां तक कि सबसे सहानुभूतिपूर्ण प्रबंधक  को भी अपने व्यवसाय  के हित को ध्यान में रखते हुए महिलाओं की समानता के हित को उसके साथ संतुलित करना मुश्किल  लग रहा था

एक बार मैं एक  फॉर्च्यून 500 कंपनी के एक वरिष्ठ प्रबंधक के साथ जेन्डर  समानता पर बातचीत कर रहा था। उसने  मुझे गर्व से बताया कि वह पूरी तरह  से जेन्डर  संवेदनशील था और घर पर सभी निर्णय उसकी पत्नी के साथ संयुक्त रूप से लिए जाते है । चर्चा में मुझे पता चला कि वह अपनी पत्नी से कार्यस्थल पर मिले थे, दोनों इंजीनियर और एमबीए  थे। उनमें से एक ने शादी के बाद अपनी कंपनी बदल दी ताकि उनके करियर का विकास बेरोकटोक जारी रह सके।  आखिरकार जब उन्होंने बच्चा पैदा करने का फैसला किया, तो उन्होंने भी संयुक्त रूप से फैसला किया कि उनकी पत्नी को अपने बच्चे को पालने के लिए काम करना बंद कर देना चाहिए।  उन्होंने जोर देकर कहा कि प्रत्येक निर्णय  संयुक्त रूप से लिया गया था और उनकी पत्नी का सभी निर्णयों मे बराबर की भागीदारी थी  यह कहानी भारत में काफी आम है, क्योंकि बर्तमान तथ्यों के अनुसार बहुत सारी महिलाएं कार्य के क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद बीच में छोड़ देती हैं। विवाह और मातृत्व उसके मुख्य कारणों में से हैं।  लोग अक्सर कहते हैं कि यह महिला का खुद का निर्णय है, महिलाएं खुद भी ऐसा ही कहती हैं।  पर  सवाल यह है कि ऐसा क्यों है? क्या इस मातृत्व से जुड़े पुरुष, पति और पिता की कोई भूमिका या जिम्मेदारी  नहीं है?

पुरुषों के अपेक्षाओं को नया रूप देना है

कोविड के समय में मुझे एक प्रमुख उद्योगपति का ट्वीट याद है। ट्वीट में उनके हजारों कर्मचारियों में से एक की पत्नी की शिकायत का उन्होंने जिक्र किया था। उस महिला ने गुजारिश की थी कि  'घर से काम' को  बंद किया जाए और उसके पति को कार्यालय वापस बुला लिया जाए । वह महिला अपनी पति के मांगों को पूरा करने में और साथ ही  घर चलाने और बच्चों का प्रबंधन करने में असमर्थ थी। उद्योगपति उस महिला के इस मांग को पूरा करने मे अपनी बेबसी को ट्वीट मे प्रकट किया था। उन्होंने नहीं सोचा कि उस महिला की समस्या उसकी या उसके कंपनियों की समस्या थी।  मेरा मानना है कि यही सब से बड़ी समस्या है!  जब हम अपने कर्मचारियों या प्रबंधकों से काम से संबंधित मामलों के लिए दिन या रात उपस्थित रहने की उम्मीद करते हैं, हम भूल जाते हैं की उन लोगों की जिंदगी कुछ और लोगों के साथ घनिष्ठ रूप से जुडी हुई रहती  है।  और उनको अपने जिंदगी में  कुछ अन्य भूमिकाएं भी निभानी हैं। इनमें पिता या पति के रूप में  उनकी भूमिकाएं और जिम्मेदारियां शामिल हो सकती हैं। आफिस के समय से परे किसी भी समय  कार्यस्थल की जरूरतों को पूरा करने  का मतलब है कि घर की कुछ भूमिकाएं और जिम्मेदारी बाधित हो सकते हैं। जब पुरुष से ये अपेक्षाएं होती हैं, तो  पुरुष स्वेच्छा से किसी भी पारिवारिक दायित्वों का त्याग कर देते  हैं। पर महिलाओं के लिए यह इतना आसान नहीं है, और वे स्वेच्छा से काम के बुलावा से मुकर जाती हैं। घर की जिम्मेदारियों को पूरा करने के कारण कार्यस्थल पर उसे गैरजिम्मेदार या नाकाबिल माना जाता है।

कई संगठनों में 'वार्षिक दिवस' समारोह होता है। इन अवसरों पर महिलाओं  को मंच पर रक्खा जाता है। वे मंच संचालन करती हैं, सम्मानित अतिथि का  स्वागत करती हैं, उन्हे गुलदस्ता देती हैं।  कार्यालय की बैठकों और पिकनिक में  अक्सर महिलाएं जलपान और मनोरंजन की व्यवस्था करती हैं । कुछ मायनों में कार्यालय में भी वे पने घर का जेन्डर आधारित भूमिकाओं का  नकल करती हैं, या उम्मीद  है कि वे करेंगी पुरुष महिलाओं को नामित करने के लिए उत्सुक हैं और महिलाएं इन्हें स्वीकारने के लिए तैयार हैं।  कार्यस्थल में कई और मौके हैं जहां इसी तरह पारंपरिक जेन्डर आधारित भूमिकाओं को दोहराया जाता है।

पुरुष कार्यालय के समय के बाद बैठकों के लिए रुके रहते हैं क्योंकि उन्हें  खाना पकाने के लिए घर पर जल्दी जाने की आवश्यकता नहीं होती है।  इसी तरह, कार्यालय आने से पहले बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने में भी  उनकी भूमिका कम हो सकती है और वे सुबह की बैठक के लिए उपस्थित होने में कोई मुश्किल महसूस नहीं करते ।

केवल मात्र सही योग्यता वाली महिलाओं की नियुक्ति से कार्यस्थल महिलाओं के लिए समान रूप से सहज  और व्यावहारिक नहीं बन जाएंगे। इसके लिए  पुरुषों का योगदान जरूरी है। पुरुषों को कार्यस्थल में एक नया वातावरण बनाने मे सहयोग देना होगा जिससे की कार्यस्थल महिलाओं और पुरुषों, दोनों के लिए गरिमापूर्ण हो, सहज हो और सहयोगी हो। इससे महिला और पुरुष दोनों के जिंदगी में अधिक कार्य-जीवन संतुलन (वर्क-लाइफ बैलन्स) हो सकता है। आज के परिस्थिति में महिलाओं से दिन या रात कभी  भी काम के लिए तैयार रहने की उम्मीद अनुचित है। यह तभी संभव होगा जब घर के पुरुष भी उनके साथ घर की हर जिम्मेदारी को पूरा करने में अपनी भूमिका निभाएंगे। आजकल हमारा समाज एक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है । इस परिवर्तन में हम सभी को शामिल होना होगा। महिलाओं को न केवल कार्यस्थल में शामिल होने के लिए प्रेरित, प्रशिक्षित और नियुक्त करना होगा, बल्कि पुरुषों की योगदान,    मालिक, प्रबंधक, साथियों, सभी की, जरूरी है सभी के योगदान से कार्यस्थल का  वातावरण उत्पादक और सौहार्दयपूर्ण बन पाएगा ।  

 

 

अभिजीत दास पिछले दो दशकों से विभिन्न जगहों पर पुरुषों के साथ प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित कर रहे हैं।

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